मुरैना। नर्सिंग कॉलेज मुरैना में पढ़ने वाली उत्तरप्रदेश के रायबरेली की छात्रा से जीजा-साले ने दुष्कर्म किया, छात्रा हुई छह माह की गर्भवती, जिसके बाद छात्रा को डरा-धमकाकर करवा दिया गर्भपात।

मामले में ग्वालियर के हजीरा थाने में सबलगढ़ बीएमओ डॉ. राजेश शर्मा, उनकी पत्नी डॉ. मनु शर्मा (भाजपा नेत्री) के साथ-साथ आरोपी जीजा-साले सहित सात लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया |

पीड़िता के अनुसार, उसने गर्भपात से निकाले गए बच्चे व डॉक्टर का फोटो मोबाइल से ले लिया, जिसके बाद डॉक्टर ने उसे धमकाया कि नर्सिंग कॉलेज के डायरेक्टर उसके परिचित हैं, वहां से फेल करवा देंगे, इसलिए चुपचाप पढ़ाई पर ध्यान दो,

जिस कॉलेज से छात्रा नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है, वह डॉ. राजेश शर्मा के ससुर का बताया गया है। आरोपों के संबंध में मुरैना के स्वास्थ्य विभाग ने भी जांच के बाद कार्रवाई की बात कही।

सोशल मीडिया सेलिब्रिटी और कंटेंट क्रिएटर ऑरी, जिन्हें ओरहान अवतरमणि के नाम से भी जाना जाता है, और सात अन्य लोगों पर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने वैष्णो देवी मंदिर के पास शराब पीने के आरोप में मामला दर्ज किया है। एएनआई की सोमवार की एक रिपोर्ट के अनुसार, कटरा में प्रतिबंधित क्षेत्र में शराब पीने के आरोप में राज्य पुलिस ने उन पर मामला दर्ज किया है।

ऑरी कई जनरेशन जेड बॉलीवुड सेलेब्स के करीबी होने के लिए जाने जाते हैं। वह जाह्नवी कपूर, अनन्या पांडे, उर्वशी रौतेला और भूमि पेडनेकर सहित अन्य लोगों के करीबी हैं।

पुलिस के अनुसार, सोशलाइट इन्फ्लुएंसर ओरहान उर्फ ऑरी सहित आठ लोगों के खिलाफ कटरा स्थित एक होटल में शराब पीने का मामला दर्ज किया गया है।   ऑरी पर अनास्तासिला अर्ज़ामास्कीना नामक एक रूसी नागरिक और अन्य दोस्तों के साथ आरोप लगाया गया है।

कटरा पुलिस स्टेशन में दर्ज एक औपचारिक शिकायत (एफआईआर नंबर 72/25) में मुख्य आरोपी ऑरी, दर्शन सिंह, पार्थ रैना, रितिक सिंह, राशी दत्ता, रक्षिता भोगल, शगुन कोहली और अर्ज़ामास्कीना हैं। उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और जिलाधिकारी के आदेश की अवहेलना करने का आरोप है।

कटरा के कॉटेज सूट इलाके में, जहां इन पर शराब पीने का आरोप लगाया गया है, गैर-शाकाहारी भोजन और शराब पर प्रतिबंध लगाने वाले सख्त नियमों का पालन किया जाता है, क्योंकि यह हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक, वैष्णो देवी मंदिर के पास है।

सोशल मीडिया यूजर्स वैष्णो देवी तीर्थ यात्रा के दौरान ऑरी के शराब पीने से नाराज हैं। कई लोगों ने मांग की कि इन्फ्लुएंसर को शहर से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

एक यूजर ने लिखा, उन्हें बाधा डालने, अपवित्र करने, अपमान करने और प्रकाशित करने के लिए भेजा जाता है ताकि यह फैल सके और दूसरों को कहीं और ऐसा करने के लिए गुमराह कर सके।

यूजर ने ऑरी की आलोचना करते हुए लिखा, यह सनातन के खिलाफ बेहद निंदनीय, असंस्कृत बॉलीवुड प्रभाव है।

दूसरों ने कमेंट सेक्शन में ऑरी का बचाव किया और लिखा, प्रसिद्धि के नकारात्मक प्रभाव। हर बार नैतिक और नैतिक रूप से सही कार्य करने का अनावश्यक दबाव। अगर यह कोई और होता, तो किसी को परवाह नहीं होती, लेकिन चूंकि यह ऑरी है – यह खबर है।

NEW DELHI: दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए लोकसभा चुनाव 2024 किसी बड़े झटके से कम नहीं रहा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली इस पार्टी के लगभग सभी बड़े चेहरे चुनाव हार गए, लेकिन एकमात्र आतिशी मार्लेना ही जीतने में सफल रहीं। उनके जीतते ही उनका डांस वीडियो वायरल हो गया, जिससे सियासी गलियारों में कई तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं।

क्या आतिशी जीत गईं या जिताई गईं

इस चुनाव में AAP के कई दिग्गजों को करारी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में सिर्फ आतिशी की जीत पर सवाल उठना लाजमी है। क्या ये महज़ संयोग है कि पार्टी के सारे बड़े नेता हारे, लेकिन आतिशी जीत गईं? या फिर उन्हें किसी खास रणनीति के तहत जिताया गया?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनकी जीत के पीछे कई कारक हो सकते हैं—चुनावी गणित, विपक्षी रणनीति की कमजोरी या फिर कुछ अंदरूनी समीकरण।

डांस पर सियासत क्यों ?

आतिशी की जीत के बाद उनका जश्न मनाना स्वाभाविक था, लेकिन जैसे ही उनका डांस वीडियो सामने आया, सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। कुछ लोगों ने इसे उनकी खुशी का इजहार बताया, तो कुछ ने इसे AAP के अंदरूनी समीकरणों से जोड़ दिया। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब पूरी पार्टी हार से जूझ रही है, तो क्या एक वरिष्ठ नेता का इस तरह से जश्न मनाना सही था? क्या ये संकेत है कि पार्टी में नया नेतृत्व उभर रहा है?

क्या AAP का हाल शिवसेना और NCP जैसा होगा ?

शिवसेना और NCP में हाल ही में जो कुछ हुआ, उसे देखकर कई लोग AAP के भविष्य को लेकर भी आशंका जता रहे हैं। दोनों पार्टियां नेतृत्व संघर्ष और बगावत का शिकार हुईं, जिससे उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हो गई।
अब सवाल उठता है कि क्या AAP भी इसी रास्ते पर जा रही है?

– आतिशी जैसी नई पीढ़ी के नेता उभर रहे हैं।
– पार्टी के अंदर नेतृत्व को लेकर मतभेद बढ़ सकते हैं।

अगर आतिशी जैसी नेता पार्टी में मजबूत होती हैं और पुराने नेताओं को पीछे छोड़ती हैं, तो पार्टी में अंदरूनी कलह हो सकती है। अगर पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा, तो इसका असर AAP के भविष्य पर पड़ सकता है।

AAP के सामने क्या हैं चुनौतियां

1. आंतरिक कलह: हार के बाद पार्टी के भीतर गुटबाजी बढ़ सकती है।
2. विश्वसनीयता का संकट: जनता में यह संदेश जा सकता है कि पार्टी कमजोर हो रही है।
3. भविष्य की रणनीति: क्या पार्टी अब अपनी रणनीति बदलेगी या पुराने तरीकों पर ही चलेगी?

आतिशी की जीत AAP के लिए राहत की बात हो सकती है, लेकिन यह पार्टी के अंदर एक नई राजनीतिक लड़ाई की शुरुआत भी कर सकती है। क्या AAP शिवसेना और NCP की तरह अंदरूनी कलह का शिकार होगी या फिर एक नए नेतृत्व के साथ मजबूती से उभरेगी? यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल आतिशी की जीत और उनका डांस, दोनों ही दिल्ली की राजनीति में हलचल मचाने के लिए काफी हैं।

Manmohan Singh Death: आर्थिक सुधारों के जनक और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधन हो गया। देर शाम तबीयत बिगड़ने के बाद सिंह को दिल्ली एम्स के इमरजेंसी विभाग में एडमिट कराया गया था। जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री रहते हुए इंडियन इकोनॉमी की तस्वीर बदल दी। भारत के आर्थिक उदारीकरण में डॉ मनमोहन का अविस्मरणीय योगदान रहा है। बता दें कि 90 के दशक में जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था उस समय वित्तमंत्री रहते हुए कई बड़े फैसले लिए। हम आपको मनमोहन सिंह के वो 7 बयान बता रहे हैं, जिन्होंने सभी को हैरान कर दिया –

”मैं जो कुछ भी हूँ, अपनी शिक्षा की वजह से हूँ।”

डॉ. मनमोहन सिंह सबसे पढ़े लिखें प्रधानमंत्री में से एक थे। उन्होंने एक बार कहा था कि ”मैं जो कुछ भी हूँ, अपनी शिक्षा की वजह से हूँ।”

”ऐसा काम कोई दूसरा राजनेता नहीं करेगा।”

साल 1996 से 2004 उनके लिए बेहद सक्रियता और व्यस्तता का दौर था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि ”ऐसा काम कोई दूसरा राजनेता नहीं करेगा।”

”मैं मानता हूँ कि आज के मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति अधिक दयालु होगा।”

एक मर्तबा उनसे पूछा कि क्या आप मानते हैं कि आप अपने मिनिस्टर्स पर नियंत्रण नहीं रख पाए। तब उन्होंने कहा था कि ”मैं मानता हूँ कि आज के मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति अधिक दयालु होगा।”

”कई मर्तबा सबसे समझदारी भरी बात यह होती है कि बहुत मूर्खतापूर्ण तरीके से काम किया जाए।”

अपने काम को लेकर वह कहते थे कि ”कई मर्तबा सबसे समझदारी भरी बात यह होती है कि बहुत मूर्खतापूर्ण तरीके से काम किया जाए।”

”यदि काम सही नहीं हुआ होता तो मुझे निकाल दिया जाता।”

जब देश की इकोनॉमी पटरी से उतरने वाली थी तब उन्होंने कहा था कि ”यदि काम सही नहीं हुआ होता तो मुझे निकाल दिया जाता।”

 ”यह समय गंवाने के लिए नहीं है।”

जब देश में डबल डिजिट की दर से महंगाई बढ़ रही थी तब उन्होंने कहा था कि ”यह समय गंवाने के लिए नहीं है।”

”बलिदान के लिए तैयार रहना होगा।”

एक बार देश की इकोनॉमी पॉलिसी में बदलाव को लेकर उन्होंने कहा था कि ”बलिदान के लिए तैयार रहना होगा।”

यह भी देखें : देश में रहने वाला ईसाई, मुस्लिम भी हिंदू हैं -धीरेंद्र शास्त्री

https://www.youtube.com/watch?v=VscPgCxOMGQ

Manmohan Singh Death: आर्थिक सुधारों के जनक और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधन हो गया। देर शाम तबीयत बिगड़ने के बाद सिंह को दिल्ली एम्स के इमरजेंसी विभाग में एडमिट कराया गया था। जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री रहते हुए इंडियन इकोनॉमी की तस्वीर बदल दी। भारत के आर्थिक उदारीकरण में डॉ मनमोहन का अविस्मरणीय योगदान रहा है। बता दें कि 90 के दशक में जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था उस समय वित्तमंत्री रहते हुए कई बड़े फैसले लिए।

कई बड़े फैसले लेकर बदल देश की दिशा

देश की इकोनॉमी को बूस्ट करने में साल 1991 में डॉ मनमोहन सिंह ने कई बड़े फैसले लिए जो मील का पत्थर साबित हुई। उन्होंने लाइसेंस राज को समाप्त कर दिया। इसके अलावा विदेशी निवेशकों के लिए उन्होंने अर्थव्यवस्था खोल दिया। भारत में उन्होंने ग्लोबलाइजेशन, लिबरलाइज़ेशन और प्राइवेटाइजेशन के नए युग की शुरुआत की। अपनी दूरदर्शिता और सूझ-बूझ से उन्होंने गंभीर आर्थिक संकट से जूझ भारत को निकाला।

जब इंडियन इकोनॉमी क्रैश हो गई थी

मनमोहन ने देश को गहरे आर्थिक संकट से निकालने में अहम भूमिका थी। यह ऐसा दौर था जब विदेशी मुद्रा भंडार ख़त्म हो गया था और देश दिवालिया होने की कगार पर था। देश में महंगाई चरम पर थी और इंडियन करेंसी क्रैश हो चुकी थी। केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी। उस समय रूपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 18 फीसदी लुढ़क गया था और देश में फॉरेक्स रिजर्व केवल 6 अरब डॉलर बचा था। जो महज दो हफ्ते के लिए था। देश का राजकोषीय घाटा 8 प्रतिशत और चालू खाता घाटा 2.5 प्रतिशत पहुंच गया था।

मनमोहन सिंह का वो ऐतिहासिक बजट

गहरे आर्थिक संकट के हालातों में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह देश के 22वें फाइनेंस मिनिस्टर बनें। इस दौरान उन्होंने 24 जुलाई 1991 को अपना पहला बजट पेश किया और आर्थिक उदारीकरण के लिए बड़े फैसलों का ऐलान किया। कहा जाता है कि 1991के इस बजट ने इंडियन इकोनॉमी की सूरत बदल दी। डॉ सिंह ने आयात शुल्क को 300 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी कर दिया और सीमा शुल्क को 220 प्रतिशत से 150 प्रतिशत कर दिया। आयात को सुगम बनाने के लिए लाइसेंस प्रक्रिया को आसान कर दिया। देश की सूरत बदलने के लिए ग्लोबलाइजेशन, लिबरलाइज़ेशन और प्राइवेटाइजेशन की बात कही गई। विदेशी निवेशकों को बढ़ाकर देश में प्राइवेट कंपनियों को आयात की आजादी दी गई।

60 करोड़ डॉलर की रकम जुटाई

इस दौरान उन्होंने TDS की शुरुआत करके कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाने का ऐलान कर दिया। साथ ही प्राइवेट सेक्टर की म्यूचुअल फंड में भागीदारी की अनुमति दी। वहीं तक़रीबन ख़त्म हो चुके विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंक ऑफ इंग्लैंड समेत अन्य संस्थानों के पास इंडियन गोल्ड को गिरवी रखने का निर्णय लिया। इससे उन्होंने करीब 60 करोड़ डॉलर की रकम जुटाई।

Atal Bihari Vajpayee: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मुरीद उनकी पार्टी के अलावा दूसरी पार्टी के लोग भी थे। उनके बारे में विपक्ष के नेता अक्सर कहा करते थे कि ‘अटलजी बेहद अच्छे आदमी थे, लेकिन ग़लत पार्टी में थे। उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। अटल जी का निधन 16 अगस्त 2018 को हुआ। वे देश के तीन बार प्रधानमंत्री बनें। पहली बार उन्होंने 1996 में महज 13 दिनों की सरकार चलाई। इसके बाद वे 1998 देश के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनें। इस बार उनकी सरकार 13 महीनों तक चलीं। साल 1999 में वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनें और उन्होंने 2004 तक पूरे पांच सालों तक सरकार चलाई।

मोदी को हटाने का मन बना लिया था

साल 2002 में पूरा गुजरात दंगों की चपेट में था। बता दें कि इन सांप्रदायिक दंगों दोनों समुदाय के हजारों लोग मारे गए थे। गुजरात में हुए दंगों के समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी और राज्य में नरेंद्र मोदी की सरकार थीं। इन दंगों के बाद अप्रैल 2002 में गोवा में पार्टी की बैठक हुई थी। इस बैठक में उन्होंने इच्छा जताई थी कि मोदी सीएम पद से इस्तीफा दें। लेकिन उस समय लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी और पार्टी के दूसरे बड़े नेताओं ने उनकी इन कोशिशों को असफल कर दिया था। बताते हैं कि उस समय बैठक में मोदी ने अभिनयात्मक तरीके से इस्तीफा देने की इच्छा प्रकट की। लेकिन बैठक के अन्य सहभागियों ने उनके प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया।

विमान में हटाने का मन बना लिया था

कहा जाता हैं कि उस वक्त गुजरात के दंगों से वाजपेयी जी बेहद हतोत्साहित थे और उन्होंने दिल्ली से गोवा जाते समय ही विमान में गुजरात मुक्यमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाने का मन बना लिया था। कहा यह भी जाता है कि गठबंधन में अपने सहभागियों की नाराजगी दूर करने के लिए उन्होंने यह फैसला लिया था। कुछ लोग मानते हैं कि अटलजी अपनी अपनी उदारवादी छवि को बचाना चाहते थे। लेकिन पार्टी बैठक में मोदी को काफी समर्थन मिला और उनका यह इरादा ख़त्म हो गया। यहां तक अटल जी ने पार्टी के आक्रामक सहयोगियों को खुश करने के लिए वाजपेयी ने इस बैठक में मुसलमानों को काफी भला बुरा कहा और यहां तक कह दिया कि मुस्लमान दूसरे समुदाय के लोगों के साथ नहीं रह सकते हैं।https://www.youtube.com/watch?v=VscPgCxOMGQ

Ken-Betwa River Link Project: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 दिसंबर को मध्यप्रदेश के खजुराहो में केन-बेतवा लिंक परियोजना का शिलान्यास करेंगे। यह राष्ट्रीय नदी जोड़ो योजना के तहत देश की पहली परियोजना है। इसका उद्देश्य मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त क्षेत्रों को पानी की सुविधा प्रदान करना है।

परियोजना की मुख्य बातें

– लागत: ₹44,605 करोड़
– मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा।
– मध्य प्रदेश के 10 जिलों और उत्तर प्रदेश के 4 जिलों में पेयजल आपूर्ति।
– ऊर्जा उत्पादन:
– 103 मेगावाट जल विद्युत।
– 27 मेगावाट सौर ऊर्जा।
– वित्तीय भार:
– 90% व्यय केंद्र सरकार द्वारा।
– 10% राज्यों द्वारा।

बुंदेलखंड क्षेत्र को मिलेगा लाभ

यह परियोजना बुंदेलखंड के आर्थिक और सामाजिक विकास में मील का पत्थर साबित होगी। इस क्षेत्र के लिए यह योजना दो दशकों से अधूरी थी। अब इसका क्रियान्वयन रोजगार के नए अवसर सृजित करेगा और पानी की कमी से जूझ रहे ग्रामीण इलाकों को राहत देगा।

जनजागरण और कार्यक्रम

– प्रभावित जिलों में नुक्कड़ नाटक, दीवार लेखन, और कलश यात्राओं के माध्यम से लोगों को परियोजना के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
– ग्राम पंचायतों में भी कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।

यातायात और सुरक्षा व्यवस्था

खजुराहो में प्रधानमंत्री के दौरे को लेकर छतरपुर पुलिस ने विशेष डायवर्सन प्लान और पार्किंग व्यवस्था बनाई है।
– विभिन्न रूट्स पर गाड़ियों के लिए पार्किंग स्थान तय किए गए हैं।
– वाहनों के आवागमन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

महत्व

यह परियोजना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सपना था। इसे पीएम मोदी के नेतृत्व में साकार किया जा रहा है। यह न केवल पानी की समस्या का समाधान करेगी, बल्कि क्षेत्र में ऊर्जा उत्पादन और रोजगार के अवसर बढ़ाने में भी सहायक होगी।

India-Palestine Relations: संसद में फिलिस्तीन के समर्थन में वायनाड सांसद प्रियंका गांधी के बैग से तेज की राजनीति गर्मा गई हैं। सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थक प्रियंका गांधी की जमकर ट्रोलिंग कर रहे हैं। वहीं, मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी प्रियंका गांधी पर जमकर प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के 5 हजार से अधिक युवा इजराइल में काम कर रहे हैं। उन्हें वहां खाना और रहना मुफ्त मिल रहा है और लाखों में सैलरी भी मिल रही है। जबकि कांग्रेस की एक सांसद संसद में फिलिस्तीन के समर्थन में बैग लेकर घूम रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत के अब तक फिलिस्तीन और इजराइल विवाद पर क्या रुख रहा है।

धर्म के आधार पर फिलिस्तीन के बंटवारे के विरोध में थे नेहरू


यूएन में नेहरू फिलिस्तीन के समर्थन में। चित्र : सोशल मीडिया

भारत को 15 अगस्त, 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली। भारत की आजादी के एक साल बाद ही 1948 में फिलिस्तीन के दो दुकड़े हो गए और इजराइल देश बसाया गया। फिलिस्तीन के बंटवारे की भनक भारत 1947 में ही लग गई थी। उस समय भारत ने संयुक्त राष्ट महासभा में फिलिस्तीन के दो टुकड़े किए जाने का विरोध जताया था। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू भारत की तरह धर्म के आधार पर फिलिस्तीन के टुकड़े करने के खिलाफ था। लिहाजा भारत ने इसके खिलाफ यूएन में मतदान भी किया था। साथ ही 1974 भारत पहला गैर अरब देश था जिसने यासिर अराफात की अगुवाई वाले फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेशनजेशन(PLO) को मान्यता प्रदान की थी। बता दें कि उस दौर में यासिर अराफात फिलिस्तीनी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। यासिर की भारत से घनिष्ट मित्रता थी। यासिर के इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से गहरे रिश्ते थे। वे इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानते थे।

यासिर अराफात के साथ अटल बिहारी वाजपेयी। चित्र: सोशल मीडिया

2015 में मोदी सरकार ने किया फिलिस्तीन का समर्थन

कांग्रेस हो या बीजेपी भारत हमेशा से फिलिस्तीन के साथ रहा है। साल 1988 में अमेरिका और इजरायल के पुरजोर विरोध के बावजूद भारत उन देशों में शामिल था जिसने फिलिस्तीन को मान्यता प्रदान की। इसी तरह सितंबर 2015 में केंद्र की मोदी सरकार ने यूएन परिसर में दूसरे देशों की तरह फिलिस्तीन के झंडे को भी लगाने का समर्थन किया। यहां के वर्तमान राष्टपति महमूद अब्बास भारत के कई दौरे कर चुके हैं। अक्टूबर 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने फिलिस्तीन का दौरा किया था। इसके अलावा भारत के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, विदेश मंत्री जसवंत और सुषमा स्वराज इस अरब देश का दौरा कर चुकी हैं।

भारत पहली बार इजराइल के खिलाफ वोटिंग से दूर रहा

7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर हमला कर दिया। इस हमले में क़रीब 1200 लोगों की मौत हो गई थी। जिसके बाद पीएम मोदी ने पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को सबसे पहले फोन कर इजरायल के साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया था। इसके बाद इजरायल ने ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में हमला कर कब्ज़ा कर लिया। इसके चलते फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र महासभा में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस यानी आईसीजे की एडवाइज़री के बाद एक साल के अंदर ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में इसराइली कब्ज़े को ख़त्म करने का प्रस्ताव लाया। इस प्रस्ताव पर 19 सितम्बर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोटिंग हुई। लेकिन भारत ने इजरायल के खिलाफ वोटिंग से दूरी बना ली। बता दें संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत समेत 193 देश है। इस प्रस्ताव पर124 सदस्य देशों ने फिलिस्तीन के समर्थन में, 14 देशों ने इजरायल के समर्थन में और भारत समेत 43 देश इस वोटिंग से बाहर रहे।

दोनों देशों को लेकर क्या स्टैंड था भारत का?

वोटिंग से दूरी बनाने के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश का कहना था कि दोनों मुल्कों के इस संघर्ष में हजारों बच्चों, महिलाओं और लोगों की मौत हो गई है। हम इजरायल पर हुए हमास के हमले की निंदा करते हैं। इस संघर्ष में हजारों लोगों के मारे जाने की भी निंदा करते हैं। साथ ही भारत ने कहा कि हम ग़ज़ा पट्टी में मानवीय मदद पहुंचाने के पक्ष में हैं। भारत ने स्पष्ट कहा कि हम दो राष्ट्र सिद्धांत की बात करते हैं। इसी के ज़रिए दोनों देशों के बीच शांति लायी जा सकती है।

2024-25 में भारत फिलिस्तीन को 50 लाख डॉलर की मदद करेगा

फिलिस्तीन और इजरायल के संघर्ष में भारत का रुख साफ है। भारत गाजा के फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद के लिए 50 लाख डॉलर की मदद करेगा। इसकी पहली क़िस्त यानी 25 लाख डॉलर भारत जारी कर चुका है। इससे साल 2023-24 में भी भारत फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद के लिए 50 लाख डॉलर की मदद की थी।

फिलिस्तीन का विरोध क्यों नहीं करता भारत?

बता दें कि इजरायल की तरह भारत के फिलिस्तीन से सीधे-सीधे कोई फायदा नहीं है। लेकिन फिलिस्तीन के समर्थन की वजह से भारत के अरब देशों से संबंध सहज रहेंगे। गौरतलब हैं कि अरब देशों पर भारत गैस, तेली जैसी चीजों के लिए निर्भर है। साथ ही लाखों भारतीय लोग अरब देशों में काम करते हैं। उन्हें किसी तरह की तकलीफ ना हो इसलिए भारत का रुख साफ है।

इजरायल से 7.5 बिलियन से ज्यादा का व्यापार

वहीं, भारत और इजरायल के व्यापारिक संबंध है। बीते वित्तीय वर्ष में भारत के साथ इजरायल का व्यापार 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का व्यापार हो चुका है। एशिया महाद्वीप में इजरायल भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इजरायल अपने कुल हथियार निर्यात का 40 फीसदी हिस्सा भारत को भेजता है। जबकि व्यापार में दोनों देश 50 फीसदी के भागीदार हैं।

MUMBAI: 13 दिसंबर को रिलीज हुई फिल्म ‘जीरो से रीस्टार्ट’ भारतीय सिनेमा में एक अनोखा प्रयोग है। यह फिल्म न केवल पिछले साल की चर्चित फिल्म ‘12th फेल’ की मेकिंग पर आधारित है,बल्कि एक प्रॉपर फिल्म के तौर पर इसे प्रस्तुत किया गया है।

‘कैसे बनी ‘जीरो से रीस्टार्ट’

– विधु विनोद चोपड़ा की टीम ने ‘12th फेल’ की शूटिंग के दौरान हर छोटे-बड़े पल को कैमरे में कैद किया था।
– विधु को जब इन बिहाइंड द सीन्स (BTS) फुटेज को देखा, तो उन्होंने महसूस किया कि इन पलों में एक पूरी कहानी छुपी है।
– उन्होंने इन वीडियो को एक फिल्म के रूप में कंपाइल किया और इसे नाम दिया ‘जीरो से रीस्टार्ट’।

फिल्म का नाम ‘जीरो से रीस्टार्ट’ क्यों ?

– यह फिल्म दिखाती है कि कैसे ‘12th फेल’ जैसी कहानी, जिसे शुरुआत में सबने नकार दिया था, आखिरकार सफलता की कहानी बन गई।
– विधु का मानना है कि कई बार जीवन में शून्य से शुरुआत करनी पड़ती है और यही ‘जीरो से रीस्टार्ट’ का संदेश है।

विधु विनोद चोपड़ा के 3 सिद्धांत

विधु विनोद चोपड़ा अपनी हर फिल्म में तीन मूल सिद्धांतों को लागू करते हैं:
1. एंटरटेनमेंट – लोगों का मनोरंजन करना।
2. एजुकेशन – दर्शकों को कुछ सीख देने का प्रयास करना।
3. एलिवेट – आगे बढ़ने की प्रेरणा देना।

‘जीरो से रीस्टार्ट’ तीसरे सिद्धांत, एलिवेट को बखूबी प्रस्तुत करती है। यह उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानते और शुरुआत करने की हिम्मत रखते हैं।

‘12th फेल’ की कहानी का असर

‘12th फेल’ आईपीएस मनोज शर्मा की संघर्षपूर्ण जिंदगी पर आधारित थी। इसने साबित किया कि मेहनत और लगन से किसी भी मुकाम को हासिल किया जा सकता है।
– शुरुआत में स्क्रिप्ट को नकारे जाने के बावजूद विधु विनोद चोपड़ा ने इसे फिल्म का रूप दिया।
– वर्ड ऑफ माउथ की बदौलत फिल्म ने सफलता पाई और लोगों के जीवन में एक गहरा प्रभाव छोड़ा।

 

‘जीरो से रीस्टार्ट’ का महत्व

– यह भारतीय सिनेमा में पहली बार हुआ कि किसी फिल्म की मेकिंग को एक अलग फिल्म के रूप में पेश किया गया है।
– यह फिल्म न केवल फिल्ममेकर्स के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि आम दर्शकों के लिए भी यह संघर्ष, भरोसे और नए सिरे से शुरुआत करने की कहानी है।

विधु विनोद चोपड़ा: जुनून और पागलपन का प्रतीक

72 साल के विधु विनोद चोपड़ा खुद मानते हैं कि उनके अंदर का “पागलपन” उन्हें युवा बनाए रखता है।
उनका यही जज्बा उनकी फिल्मों में झलकता है, चाहे वह ‘मुन्ना भाई’, ‘3 इडियट्स’* हो या अब  ‘जीरो से रीस्टार्ट’।

‘जीरो से रीस्टार्ट’ यह संदेश देती है कि असफलता या ठुकराए जाने के बावजूद हार न मानें। जब भी जीवन में चुनौतियां आएं, तो पूरी ताकत के साथ फिर से शुरुआत करें।

Zakir Hussain: इंडियन म्यूजिक के सरताज और पद्म विभूषण तबला वादक जाकिर हुसैन का रविवार देर रात निधन हो गया। उनके निधन की पुष्टि उनके परिवार न कर दी है। शास्त्रीय संगीत के इस बेताज बादशाह की तबीयत बीते कुछ समय से नासाज़ चल रही थी।

दरअसल, ज़ाकिर साहब की फेफड़ों की गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। वे फेफड़ों की इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक बीमारी से जूझ रहे थे। हाल के दिनों में उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई थी। जिसके चलते उन्हें सेन फ्रैंसिको (अमेरिका) के निजी हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था। 73 साल की उम्र में इस फानी दुनिया को अलविदा कहने वाले ज़ाकिर हुसैन ने एक समय सबसे सेक्सी मैन का कॉम्पिटिशन जीता था।

अमिताभ बच्चन को शिकस्त का किस्सा

साल 1994 में इंडियन मैगज़ीन जेंटलमैन ने सबसे सेक्सी मैन की प्रतियोगिता आयोजित की थी। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इस प्रतियोगिता में जाकिर हुसैन को सबसे सेक्सी मैन के ख़िताब से नवाजा गया था। बता दें कि जाकिर साहब अपने ट्रेडिशनल ड्रेसकोड की वजह से विख्यात थे। उनके हैंडसम लुक का हर कोई कायल था। कुर्ता पजामा और घुंघराले बाल में वे खूब फबते थे। सबसे ख़ास बात यह है कि इसमें उन्होंने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को शिकस्त दी थीं।

अंतिम वीडियो शेयर किया

जाकिर साहब ने इंस्टाग्राम पर अपना अंतिम वीडियो शेयर किया था। इसमें वे नज़र नहीं आ रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज़ आप सुन सकते हैं। यह वीडियो 29 अक्टूबर को उन्होंने शेयर किया था, जो भारत नहीं बल्कि विदेश का था। इसमें पीली पत्तियों वाला एक पेड़ नज़र आ रहा है, जिसमें हवा की सरसराहट की आवाज़ आ रही है। नेचर के प्रति उनका कितना लगाव था, इस वीडियो को देखकर आप समझ सकते हैं। इस वीडियो से जाकिर साहब अपने फैंस को प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे से रूबरू करा रहे हैं। यह वीडियो बेहद सुकून भरा है जिसे उन्हें ग्रेसफुल करार दिया था।

वीडियो देखिए:

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