Farming: आबादी के हिसाब से भारत, चीन से आगे निकल चुका हैं लेकिन अनाज उत्पादन में भारत चीन के आगे कहीं नहीं ठहरता है। भारत में जहां एक तरफ उर्वरकों को प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जा रहा हैं, वहींचीन अपनी फसलों में उर्वरकों का उपयोग कम कर दिया है। इसके बावजूद उसका अनाज उत्पादन हर वर्ष लगातार बढ़ रहा हैं। तो आइए जानते हैं भारत और चीन में फसल उत्पादन में कितना अंतर हैं।

बीते वर्ष चीन ने 7065 लाख टन उत्पादन किया

बीते वर्ष यानी साल 2024 में चीन अनाज का 7065 लाख टन उत्पादन किया। वहीं, 2023 में यह आंकड़ा 695.41 मिलियन टन का था। वहां के कृषि मंत्री के मुताबिक, बीजों की बेहतर क्वालिटी, खेती की आधुनिक तकनीक और कृषि निवेश को बढ़ाने से उनका उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। इस वर्ष चीन में धान का भी काफी उत्पादन हुआ है। इस साल चावल का उत्पादन 2075 लाख टन रहा है। 2024 में वहां चावल उत्पादन में 0.5 प्रतिशत का इजाफा हुआ। जबकि गेहूं में 2.6 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। गेहूं का कुल उत्पादन 1401 लाख टन रहा। मक्का बीते साल वहां 2949.2 लाख टन का रहा।

भारत ने 3288.52 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन किया

भारत में साल 2023-24 में 3288.52 लाख मीट्रिक टन अनाज का उत्पादन हुआ। चीन की तुलना में भारत अनाज उत्पादन में काफी पीछे हैं। 2024 में भारत में 1367 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ। जबकि 1129.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 356.73 लाख मीट्रिक टन मक्का का उत्पादन हुआ। बता दें कि चीन और भारत का गेहूं उत्पादन लगभग करीब है लेकिन अन्य अनाजों में हम काफी पीछे हैं।

यह भी जानिए

1. भारत चीन से फसल उत्पादन में काफी पीछे हैं, इसके बावजूद चीन को अपनी खाद्यान्य पूर्ति के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि भारत अपनी घरेलु खाद्यान्न पूर्ति कर लेता है।

2. बता दें कि चीन में शहरीकरण और क्लाइमेट चेंज के कारण फसलें काफी प्रभावित होती है। वहीं, वहां कि कृषि भूमि का एक तिहाई हिस्सा ही उपजाऊ है।

3. चीन में 2014 से 2020 के बीच आधुनिक खेती में ड्रोन का उपयोग 250 फीसदी तक बढ़ गया है। वहीं, भारत में खेती में ड्रोन के उपयोग को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।

4. आधुनिक खेती के बाद चीन ने भारत को चावल उत्पादन में भी पीछे छोड़ दिया है। साल 2023 में भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश रहा है। जबकि इस सूची में चीन 5वें पायदान पर था।

5. चावल की तरह गेहूं उत्पादन में चीन सबसे बड़ा देश है। इसके बावजूद घरेलू खपत के लिए चीन को भारत समेत दूसरे देशों गेहूं निर्यात करना पड़ता है।

यह भी पढ़ें:

Adani Share Price: अडानी समूह का ये एक शेयर खरीदकर छोड़ दो, भविष्य में कर देगा मालामाल!

Zomato Share Price: आज ही Zomato के शेयर खरीद कर पटक दें, भविष्य में कराएगा तगड़ी कमाई?

India-Palestine Relations: संसद में फिलिस्तीन के समर्थन में वायनाड सांसद प्रियंका गांधी के बैग से तेज की राजनीति गर्मा गई हैं। सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थक प्रियंका गांधी की जमकर ट्रोलिंग कर रहे हैं। वहीं, मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी प्रियंका गांधी पर जमकर प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के 5 हजार से अधिक युवा इजराइल में काम कर रहे हैं। उन्हें वहां खाना और रहना मुफ्त मिल रहा है और लाखों में सैलरी भी मिल रही है। जबकि कांग्रेस की एक सांसद संसद में फिलिस्तीन के समर्थन में बैग लेकर घूम रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत के अब तक फिलिस्तीन और इजराइल विवाद पर क्या रुख रहा है।

धर्म के आधार पर फिलिस्तीन के बंटवारे के विरोध में थे नेहरू


यूएन में नेहरू फिलिस्तीन के समर्थन में। चित्र : सोशल मीडिया

भारत को 15 अगस्त, 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली। भारत की आजादी के एक साल बाद ही 1948 में फिलिस्तीन के दो दुकड़े हो गए और इजराइल देश बसाया गया। फिलिस्तीन के बंटवारे की भनक भारत 1947 में ही लग गई थी। उस समय भारत ने संयुक्त राष्ट महासभा में फिलिस्तीन के दो टुकड़े किए जाने का विरोध जताया था। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू भारत की तरह धर्म के आधार पर फिलिस्तीन के टुकड़े करने के खिलाफ था। लिहाजा भारत ने इसके खिलाफ यूएन में मतदान भी किया था। साथ ही 1974 भारत पहला गैर अरब देश था जिसने यासिर अराफात की अगुवाई वाले फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेशनजेशन(PLO) को मान्यता प्रदान की थी। बता दें कि उस दौर में यासिर अराफात फिलिस्तीनी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। यासिर की भारत से घनिष्ट मित्रता थी। यासिर के इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से गहरे रिश्ते थे। वे इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानते थे।

यासिर अराफात के साथ अटल बिहारी वाजपेयी। चित्र: सोशल मीडिया

2015 में मोदी सरकार ने किया फिलिस्तीन का समर्थन

कांग्रेस हो या बीजेपी भारत हमेशा से फिलिस्तीन के साथ रहा है। साल 1988 में अमेरिका और इजरायल के पुरजोर विरोध के बावजूद भारत उन देशों में शामिल था जिसने फिलिस्तीन को मान्यता प्रदान की। इसी तरह सितंबर 2015 में केंद्र की मोदी सरकार ने यूएन परिसर में दूसरे देशों की तरह फिलिस्तीन के झंडे को भी लगाने का समर्थन किया। यहां के वर्तमान राष्टपति महमूद अब्बास भारत के कई दौरे कर चुके हैं। अक्टूबर 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने फिलिस्तीन का दौरा किया था। इसके अलावा भारत के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, विदेश मंत्री जसवंत और सुषमा स्वराज इस अरब देश का दौरा कर चुकी हैं।

भारत पहली बार इजराइल के खिलाफ वोटिंग से दूर रहा

7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर हमला कर दिया। इस हमले में क़रीब 1200 लोगों की मौत हो गई थी। जिसके बाद पीएम मोदी ने पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को सबसे पहले फोन कर इजरायल के साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया था। इसके बाद इजरायल ने ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में हमला कर कब्ज़ा कर लिया। इसके चलते फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र महासभा में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस यानी आईसीजे की एडवाइज़री के बाद एक साल के अंदर ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में इसराइली कब्ज़े को ख़त्म करने का प्रस्ताव लाया। इस प्रस्ताव पर 19 सितम्बर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोटिंग हुई। लेकिन भारत ने इजरायल के खिलाफ वोटिंग से दूरी बना ली। बता दें संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत समेत 193 देश है। इस प्रस्ताव पर124 सदस्य देशों ने फिलिस्तीन के समर्थन में, 14 देशों ने इजरायल के समर्थन में और भारत समेत 43 देश इस वोटिंग से बाहर रहे।

दोनों देशों को लेकर क्या स्टैंड था भारत का?

वोटिंग से दूरी बनाने के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश का कहना था कि दोनों मुल्कों के इस संघर्ष में हजारों बच्चों, महिलाओं और लोगों की मौत हो गई है। हम इजरायल पर हुए हमास के हमले की निंदा करते हैं। इस संघर्ष में हजारों लोगों के मारे जाने की भी निंदा करते हैं। साथ ही भारत ने कहा कि हम ग़ज़ा पट्टी में मानवीय मदद पहुंचाने के पक्ष में हैं। भारत ने स्पष्ट कहा कि हम दो राष्ट्र सिद्धांत की बात करते हैं। इसी के ज़रिए दोनों देशों के बीच शांति लायी जा सकती है।

2024-25 में भारत फिलिस्तीन को 50 लाख डॉलर की मदद करेगा

फिलिस्तीन और इजरायल के संघर्ष में भारत का रुख साफ है। भारत गाजा के फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद के लिए 50 लाख डॉलर की मदद करेगा। इसकी पहली क़िस्त यानी 25 लाख डॉलर भारत जारी कर चुका है। इससे साल 2023-24 में भी भारत फिलिस्तीनी शरणार्थियों की मदद के लिए 50 लाख डॉलर की मदद की थी।

फिलिस्तीन का विरोध क्यों नहीं करता भारत?

बता दें कि इजरायल की तरह भारत के फिलिस्तीन से सीधे-सीधे कोई फायदा नहीं है। लेकिन फिलिस्तीन के समर्थन की वजह से भारत के अरब देशों से संबंध सहज रहेंगे। गौरतलब हैं कि अरब देशों पर भारत गैस, तेली जैसी चीजों के लिए निर्भर है। साथ ही लाखों भारतीय लोग अरब देशों में काम करते हैं। उन्हें किसी तरह की तकलीफ ना हो इसलिए भारत का रुख साफ है।

इजरायल से 7.5 बिलियन से ज्यादा का व्यापार

वहीं, भारत और इजरायल के व्यापारिक संबंध है। बीते वित्तीय वर्ष में भारत के साथ इजरायल का व्यापार 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का व्यापार हो चुका है। एशिया महाद्वीप में इजरायल भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इजरायल अपने कुल हथियार निर्यात का 40 फीसदी हिस्सा भारत को भेजता है। जबकि व्यापार में दोनों देश 50 फीसदी के भागीदार हैं।