Rewa: रीवा में ठंड का सीजन आते ही बाजारों में जगह-जगह आपको कई ऐसी दुकान और ठेले दिखाई देंगे जो अमरूदों से सजे हुए है। यह एक ऐसा फल है, जिसे देखते ही किसी के भी मुंह में पानी आ जाए।

बूढ़ा हो या जवान हर कोई इस फल का दीवाना है। रीवा फल अनुसंधान केंद्र में उत्पादित किए जा रहे अमरूदों के 80 वेरायटियों में से एक धारीदार अमरूद बेहद ही खास है। धारीदार अमरुद के टेस्ट की बात ही अलग है। इस अमरूद की खासियत है कि इसके मिठास का हर कोई कायल है। इसके साथ ही इसके अंदर के बीज भी अन्य अमरूद की तुलना में काफी मुलायम है।

फल अनुसंधान केंद्र में उत्पादित धारीदार अमरूद। चित्र: एसीएन भारत

रीवा कृषि वैज्ञानिक फल अनुसंधान केन्द्र के टीके सिंह का कहना हैं कि इसकी सबसे बड़ी पहचान है की इसके बाहरी भाग में 6 धारियां होती है। जिसके कारण इस फल को धारीदार अमरूद कहा जाता है। रीवा के कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र तो वैसे आमों के बागीचे के नाम से जाना जाता है। यहां अमरपाली, सुंदरजा दशहरी, लंगड़ा, मल्लिका, बेंगलुरु, चौसा, बॉम्बे ग्रीन जैसे कई किस्म के आमों की वैरायटी उपलब्ध है।

रीवा कृषि वैज्ञानिक फलअनुसंधान केन्द्र के टीके सिंह। चित्र: एसीएन भारत

मगर इस अनुसंधान केंद्र में स्थित एक बाग ऐसा भी है, जहां पर अमरूद की 80 से ज्यादा वैरायटियों पर वैज्ञानिकों के द्वारा शोध किया जा रहा है। इनमें से एक अमरूद बेहद खास है जिसका नाम धारीदार अमरुद है।

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रीवा। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि खून चूसने वाली जोंक आपका मर्ज़ भी ठीक कर सकता है। दरअसल, इन दिनों रीवा के शासकीय आयुर्वेद अस्पताल में लीच थेरेपी के द्वारा कई बीमारियों का इलाज किया जा रहा है, जो काफी कारगर भी साबित हो रहा है। जानकारी के अनुसार, इससे कई मरीजों को काफी फायदा भी हो रहा है।

बता दें कि आयुर्वेद की लीच थेरेपी के द्वारा कई बीमारियों का इलाज किया जाता है। रीवा के शासकीय आयुर्वेद कॉलेज में इन दिनों इसी पद्धति के द्वारा कई रोगों का इलाज किया जा रहा है। इससे मरीजों को काफी फायदा भी हो रहा है। इस पद्धति में शरीर के जिस भी हिस्से में इलाज करना होता है, वहाँ पर जोंक छोड़ दिया जाता है। जिसके बाद दूषित रक्त चूसने के बाद जोंक अपने आप उस हिस्से से अलग हो जाता है। आयुर्वेद के मरीज़ों के लिए यह लाभदायक पद्धति है। प्रभावित स्थानों से ज़हरीले तत्वों को बाहर निकालने के लिए जोंक का प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद चिकित्सालय के डीन डॉ. दीपक कुलश्रेष्ठ का कहना हैं कि जोंक के लार्वा में दर्द कम करने की ताकत होती है। एक तरफ यह शरीर के बीमार हिस्से से जहरीले तत्वों को चूस कर बाहर निकाल देते हैं।

वहीं दूसरी तरफ जोंक के लार्वा से मरीजों को दर्द में राहत मिल जाती है। उन्होंने बताया कि चिकित्सा विज्ञान में इस विधि को लीच थेरेपी कहा जाता है।चिकित्सक बताते हैं कि जोंक थेरेपी लाइलाज बीमारियों में कारगर साबित हो रही है। इस थेरेपी से कई मरीजों का इलाज चल रहा है, जिन्हें काफी फायदा हुआ है।