Vijaya Raje Scindia: भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया का कभी कांग्रेस से नाता था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी। दरअसल, साल 1957 में कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद वे गुना से सांसद चुनी गई। लेकिन, कांग्रेस में दस साल बिताने के बाद साल 1967 में उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने इसी वर्ष जनसंघ से नाता जोड़ लिया।
बचपन में बरमान घाट की दीवानी थी

राजमाता के बारे में कहा जाता हैं कि जबलपुर से तक़रीबन 125 किलोमीटर दूर करेली-सागर मार्ग पर बसे बरमान घाट (ब्रह्मांड घाट) की वे बचपन में मुरीद थीं। दरअसल, ब्रह्मांड घाट का अपभ्रंश ही बरमान घाट है। यहां के कुदरती नजारों के मोह में महारानी विजयराजे सिंधियां बचपन में पूरे लाव-लश्कर के साथ महीनों बिताती थीं। बरमान घाट से सिंधिया घराने का विशेष मोह था, इसीलिए यहां रानी कोठी बनवाई गई थीं।
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इंदिरा लहर में भी चला जादू

राजमाता विजया राजे सिंधिया महाराजा जिवाजीराव सिंधिया की पत्नी के रूप में ही नहीं, बल्कि अपनी एक अलग शख़्सियत की वजह से भी वे जानी जाती थीं। वे ऐसी राजनीतिक शख़्सियत थीं, जो कई दफा संसद के दोनों सदनों में चुनी गई। साल 1967 में कांग्रेस से अपना नाता तोड़ने के बाद वे जनसंघ की सदस्य बन गई। इसके बाद वे बीजेपी के संस्थापकों में से एक बनीं। वे राजनीतिक क्षेत्र की कितनी बड़ी शख़्सियत थीं, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता हैं कि साल 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद उन्होंने जनसंघ को ग्वालियर क्षेत्र की तीन सीटों पर जीत दिलाई। उस साल विजयाराजे सिंधिया, उनके पुत्र माधवराव सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी क्रमशः भिंड, गुना और ग्वालियर से सांसद चुने गए।
कभी बेटे माधवराव सिंधिया से थे प्रगाढ़ संबंध
नामचीन पॉलिटिकल एनालिटिक्स रशीद किदवई ने अपनी प्रसिद्ध किताब द हाउस ऑफ़ सिंधियाज-ए सागा ऑफ़ पावर, पॉलिटिक्स एंड इन्ट्रीग (The House of Scindias: A Saga of Power, Politics and Intrigue) में बताया कि एक समय राजमाता विजयाराजे सिंधिया और उनके बेटे माधवराव सिंधिया में बेहद प्रगाढ़ संबंध थे। वे बताते हैं कि एक समय माधवराव, अपनी महिला मित्रों के बारे में अपनी मां विजयाराजे सिंधिया को ही बताया करते थे। राजमाता सिंधिया खुद अपनी बायोग्राफी प्रिंसेज़ में लिखती हैं कि भैया (माधवराव सिंधिया) और मैं फ्रेंड्स की तरह थे। एक मर्तबा वे (माधवराव) मेरे होटल में आए और मुझसे रात दो बजे तक खुलकर बातें करते रहे। मुझे अपनी महिला मित्रों के बारे में बताते रहे।
बाद में माँ-बेटे में बढ़ गई तल्ख़िया

इतने प्रगाढ़ संबंध होने के बाद भी महारानी और माधवराव के संबंध कैसे बिगड़ गए इस बारे में 30 सिंतबर 1991 के इंडिया टुडे के अंक में फेमस जर्नलिस्ट एनके सिंह का एक आर्टिकल डॉमेस्टिक बैटल बिटवीन विजयराजे एंड माधवराव सिंधिया छपा था। जिसमें वे लिखते हैं कि माधवराव ने मुझे एक दफा बताया था कि उनके और मां के संबंध में कड़वाहट साल 1972 में आना शुरू हो गई थीं। उनका कहना था कि जब मैंने जनसंघ का साथ छोड़कर कांग्रेस में जाने की बात कही तो यह बात उन्हें नागवार गुजरी। साथ ही माधवराव ने यह भी माना कि ऑक्सफ़र्ड जैसी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करके भारत आकर जनसंघ का मेंबर बनना उनकी सबसे बड़ी भूल थीं। इसी लेख में सिंह आगे लिखते हैं कि ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के दिवंगत सरदार संभाजी राव आंग्रे का इस बारे में अलग मत था। उनका मानना था कि साल 1972 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जनसंघ हार गई थी, लिहाजा माधवराव ने जनसंघ का साथ छोड़ दिया था।